संत जानाबाई — भक्ति, सेवा और विनम्रता की प्रतिमूर्ति
संत जानाबाई — भक्ति, सेवा और विनम्रता की प्रतिमूर्ति संक्षेप में: संत जानाबाई मराठी भक्ति परंपरा की महान कवयित्री और विठोबा की अनन्य भक्त थीं। उनका जीवन सेवा, श्रम और ईश्वर प्रेम का सच्चा प्रतीक है। उन्होंने दिखाया कि सच्ची भक्ति का अर्थ कर्म और विनम्रता में है। 1️⃣ प्रारंभिक जीवन संत जानाबाई का जन्म लगभग 1270 ईस्वी में महाराष्ट्र के गंगाखेड़ (जिला परभणी) में हुआ। बचपन से ही वे अत्यंत भक्ति-भाव से युक्त थीं। माता-पिता के देहांत के बाद उन्होंने संत नामदेव के घर में सेवा की। वहीं से उनके जीवन में विठोबा के प्रति प्रेम और समर्पण का आरंभ हुआ। 2️⃣ नामदेव और जानाबाई का संबंध संत जानाबाई, नामदेव महाराज के घर में सेवा करती थीं, परंतु वे उनके लिए मात्र एक दासी नहीं थीं — वे “भक्ति की सखी” थीं। उन्होंने कहा था — “मी दासी नाही, मी विठोबाची सखी आहे।” (“मैं दासी नहीं, विठोबा की सखी हूँ।”) 3️⃣ विठोबा भक्ति और साधना जानाबाई ने जीवन का हर क्षण विठोबा की सेवा में लगाया। वे काम को ही पूजा मानती थीं। उनका मानना था कि — “सेवा ही साधना है, श्रम ही भक्ति है।” उन्होंने...