“विठ्ठल भक्ति के प्रखर साधक: संत तुकाराम”

         🌸 संत तुकाराम जी महाराज: 

       भक्ति, प्रेम और मानवता के प्रतीक 🌸


1. परिचय

भारत भूमि संतों और महापुरुषों की पावन धरती रही है। यहाँ अनेक ऐसे संत हुए जिन्होंने अपनी साधना और उपदेशों से समाज को दिशा दी। महाराष्ट्र की भक्ति परंपरा में एक अनमोल रत्न हैं – संत तुकाराम जी महाराज (1608-1649)। वे वारकरी संप्रदाय के प्रमुख संत थे। उनकी रचनाएँ “अभंग” कहलाती हैं, जो सरल भाषा में ईश्वर भक्ति और जीवन का सत्य प्रकट करती हैं। तुकाराम जी ने समाज को सिखाया कि ईश्वर किसी जाति, धर्म, या मंदिर तक सीमित नहीं है; बल्कि हर हृदय में उसका वास है। उनका जीवन कठिनाइयों से भरा रहा, परंतु उन्होंने कभी ईश्वर का नाम नहीं छोड़ा। यही कारण है कि वे आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं।


2. जन्म और परिवार

संत तुकाराम जी का जन्म 1608 ईस्वी में महाराष्ट्र के पुणे ज़िले के देहू गाँव में हुआ। उनके पिता का नाम – बोल्होजी (Bolhoji) और माता का नाम – कनकाई (Kanakai) था। परिवार का कामकाज व्यापार और खेती पर आधारित था। वे वैश्य (कुणबी) समाज से थे। बचपन से ही वे सरल, दयालु और धार्मिक प्रवृत्ति के थे। वे घंटों नदी किनारे बैठकर ईश्वर का ध्यान किया करते थे।


3. बचपन और कठिनाइयाँ

तुकाराम जी का बचपन साधारण था लेकिन समय ने बहुत जल्दी उन्हें परखा। जब वे किशोर अवस्था में थे, तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया। घर की सारी ज़िम्मेदारी उन पर आ गई। व्यापार में भारी नुकसान हुआ और परिवार पर कर्ज़ का बोझ बढ़ गया।

भुखमरी की स्थिति तक आ गई। उनकी पहली पत्नी और पुत्र भी असमय मृत्यु को प्राप्त हुए। इन दुखद परिस्थितियों ने तुकाराम जी को सांसारिक मोह से अलग कर दिया। उन्होंने अपना मन केवल भगवान विठ्ठल (पांडुरंग) की भक्ति में लगा दिया।

4. ईश्वर भक्ति की ओर रुझान

कठिनाइयों के बीच तुकाराम जी को भगवान विठ्ठल में शांति और आश्रय मिला। वे घंटों पिंपरी नदी के किनारे ध्यान करते और भजन गाते। कहा जाता है कि भगवान विठ्ठल ने उन्हें दर्शन दिए और तभी से उनका जीवन पूरी तरह भक्ति में समर्पित हो गया। उन्होंने अपने भजनों में लिखा कि  मानव जीवन का सच्चा सुख केवल ईश्वर की भक्ति में है, धन और पद सब नश्वर हैं।”


5. संत तुकाराम जी की रचनाएँ (अभंग साहित्य)

तुकाराम जी की सबसे बड़ी देन है उनका अभंग साहित्य। अभंग” का अर्थ है – ऐसा भजन जो कभी टूटे नहीं, सदा जीवित रहे। उन्होंने लगभग 4600 से अधिक अभंग लिखे। इन अभंगों को मिलाकर “तुकाराम गाथा” नामक ग्रंथ तैयार हुआ।


अभंगों की विशेषताएँ:

1. सरल और सहज भाषा।

2. गहरी आध्यात्मिकता और भक्ति भाव।

3. सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों पर प्रहार।

4. ईश्वर भक्ति, प्रेम और समानता का संदेश।

6. समाज सुधार और उनके विचार

तुकाराम जी केवल संत नहीं, बल्कि समाज सुधारक भी थे। उन्होंने जाति-पांति के भेदभाव का विरोध किया। कहा – “ईश्वर के सामने सब बराबर हैं, चाहे ब्राह्मण हो या शूद्र।” उन्होंने दिखाया कि असली पूजा मंदिर या कर्मकांड में नहीं, बल्कि सच्चे हृदय और सेवा में है। उन्होंने दंभ, पाखंड और अंधविश्वास का विरोध किया। गरीब और दलित वर्ग को उन्होंने सम्मान दिया और भक्ति मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।


7. संत तुकाराम जी के प्रमुख उपदेश (Teachings)

7.1 ईश्वर का स्मरण

हमेशा भगवान का नाम जपना चाहिए। सांसारिक सुख-दुख आते-जाते रहते हैं, लेकिन ईश्वर का नाम शाश्वत है।


7.2 समानता का संदेश

कोई ऊँच-नीच, बड़ा-छोटा नहीं है।

सभी जीव ईश्वर की संतान हैं।

7.3 सच्चा भक्ति मार्ग

तुकाराम जी ने कर्मकांड की बजाय नाम-स्मरण और कीर्तन को श्रेष्ठ माना।

उनका कहना था कि –ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग कठिन नहीं, केवल सच्चा और निर्मल हृदय चाहिए।”

7.4 सेवा और करुणा

भूखे को अन्न देना, दुखी को सांत्वना देना, यही सच्ची भक्ति है।

उन्होंने कहा –

दूसरों की सेवा में ही भगवान की सेवा है।”

7.5 अहंकार का त्याग

अहंकार ही इंसान को ईश्वर से दूर करता है।

धन, पद, प्रसिद्धि सब क्षणभंगुर हैं।


8. वारकरी संप्रदाय और उनकी भूमिका

संत तुकाराम जी वारकरी संप्रदाय के प्रमुख संत थे।वारकरी संप्रदाय के लोग हर साल पंढरपुर यात्रा करते हैं और विठ्ठल भगवान के दर्शन करते हैं। यात्रा के दौरान तुकाराम जी के भजन गाए जाते हैं। यह परंपरा आज भी लाखों लोगों को जोड़ती है।


9. पंढरपुर यात्रा और विठोबा भक्ति

तुकाराम जी ने अपने जीवन का अधिकांश समय भगवान विठोबा की भक्ति में बिताया। वे हर समय “विठ्ठल, विठ्ठल” नाम का स्मरण करते थे। पंढरपुर की यात्रा उनके लिए ईश्वर से मिलने का सबसे बड़ा अवसर थी।



10. समाधि और आकाश गमन 

संत तुकाराम जी ने अपना जीवन लगभग 41 वर्ष तक जिया। माना जाता है कि 1649 ईस्वी में उन्होंने देहू गाँव में अपने भक्तों के सामने ही आकाश गमन

 (देहत्याग) किया।

उनकी समाधि आज भी देहू में स्थित है, जहाँ लाखों श्रद्धालु जाते हैं।


11. आज के समय में तुकाराम जी की प्रासंगिकता

संत तुकाराम जी के उपदेश आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने उनके समय में थे। जाति-भेद मिटाकर समानता का संदेश। लालच और अहंकार छोड़कर सादगीपूर्ण जीवन जीना। ईश्वर को पाने के लिए भव्य मंदिर नहीं, बल्कि निर्मल हृदय चाहिए। सेवा, करुणा और प्रेम ही सच्चा धर्म है।

आज की दुनिया, जहाँ लोग भौतिक सुखों के पीछे भाग रहे हैं, तुकाराम जी का संदेश हमें आंतरिक शांति और भक्ति का मार्ग दिखाता है।


12. निष्कर्ष

संत तुकाराम जी का जीवन हमें यह सिखाता है कि 

कठिनाइयाँ चाहे कितनी भी क्यों न हों, ईश्वर का नाम नहीं छोड़ना चाहिए असली पूजा मानवता की सेवा है। भक्त वही है जो दूसरों का भला चाहता है और ईश्वर के प्रति समर्पित रहता है।

तुकाराम जी का नाम, उनके अभंग और उपदेश आने वाली पीढ़ियों को भक्ति और सच्चे जीवन का मार्ग दिखाते रहे हैं 



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