“संत प्रेमानंद जी महाराज: प्रेम, भक्ति और जीवन का अद्भुत मार्ग”

 संत प्रेमानंद जी महाराज



1. परिचय और प्रारंभिक जीवन

जन्म: उनका जन्म 30 मार्च 1969 को उत्तर प्रदेश के कानपुर ज़िले में, सरसौल ब्लॉक के अखरी गांव में हुआ था। उनका बाल नाम अनिरुद्ध (या अनिरुद्ध) कुमार पांडेय था।

परिवार: माता—श्रीमती रमा देवी, पिता—श्री शंभू पांडेय। परिवार अत्यंत भक्तिपूर्ण और सात्विक था, जिसमें दादा पहले ही संन्यासी थे। वे बचपन से ही धार्मिक वातावरण में बढ़े, जहाँ परिवार में भगवद् गीता और भागवतम् का पाठ होते थे।

प्राथमिक आध्यात्मिक अनुभव: पांचवीं कक्षा में ही उन्होंने “श्री राम जय राम जय जय राम” और “श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी” जैसे मंत्रों का जाप शुरू कर दिया। नववी कक्षा तक पहुँचते-पहुँचते उन्होंने आत्मा की खोज और जीवन का उद्देश्य समझने के लिए अपनी साधना आरंभ कर दी और 13 वर्ष की अवस्था में परिवार छोड़कर एक आध्यात्मिक पथ पर चले गए।



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2. दीक्षा, साधना और गुरु

संन्यास ग्रहण: 13 साल की उम्र में उन्होंने संन्यास लिया। उन्हें पहले नाम Anandswaroop Brahmachari, फिर बाद में Swami Anandashram दिया गया।

वरानसी में साधना: वे वाराणसी के घाटों और पिपल के पेड़ के नीचे ध्यान साधना करते थे। वहीं एक संत ने उन्हें रास लीला देखने का आग्रह किया, जिससे उनकी वृन्दावन यात्रा शुरू हुई।

गुरु से मिलन: वृन्दावन आकर उन्होंने Gaurangi Sharan Ji Maharaj (Bade Guruji) से शरणागत मंत्र ग्रहण किया और 'सहचारी भाव' व 'नित्य विहार रस' की दीक्षा मिली—ताकि वे रसिक संतों की परंपरा में प्रवेश कर सकें।



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3. व्यक्तित्व, दर्शन एवं जीवन मूल्यों

मूल गुण: प्रेमानंद जी महाराज को निर्मलता (Innocence), विनम्रता (Humility) और निश्छल प्रेम (Unconditional Love) का उदाहरण माना जाता है। वे “Tat Sukh Bhav” (दूसरों में सुख खोजने का भाव) के प्रतीक हैं।

निजी जीवनशैली: उन्होंने प्रसिद्धि, धन-दौलत और ढेरों सुविधाओं से परहेज़ करते हुए केवल देव सेवा (Seva) को ही जीवन का उद्देश्य बनाया।

प्रेम की महत्ता: उनका मानना है कि "प्रेम (Prem)" ही मोक्ष की असली राह है—वो सार्वभौमिक है, किसी धर्म या रीति-रिवाज़ से बंधा नहीं है।

शारीरिक चुनौतियाँ और मानसिक दृढ़ता: रपटों के अनुसार, वे कुछ समय से गुर्दे की बीमारी से पीड़ित हैं, फिर भी जन-साधारण में उपस्थित रहकर उन्हें जीवन में दृढ़ता, आशा और तपस्या का संदेश देते रहते हैं।



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4. जीवन के महत्वपूर्ण सबक

(a) संघर्ष और दृढ़ता

रूटरवार गुर्दे की गंभीर समस्या के बावजूद उन्होंने अपनापन और समर्थन की किरण बनाकर दिखाया कि जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण से जीना चाहिए।


(b) निराकार प्रेम काआधार

प्रेमानंद जी यह बताते हैं कि सबसे उच्चतम साधना सिर्फ्‌ रसरूपी प्रेम है—जो सच्चा और नि:स्वार्थ होना चाहिए।


(c) विनम्रता और सादगी

प्रसिद्धि मिलने पर भी उन्होंने अपनी साधारणता नहीं छोड़ी और यह बताते रहे कि विजय और सफलता का असली मोल विनम्रता में है।


(d) अहंकार जीवन का बाधक

वे लगातार कहते हैं कि अहंकार ही सबसे बड़ा शत्रु है और सफलता जीवन में विनम्रता से ही काबिलियत आती है।


(e) आंतरिक सुख का महत्व

जीवन केवल बाहरी प्राप्तियों की दौड़ नहीं है, बल्कि आंतरिक संतोष और आत्म-शांति भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।


(f) शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य

वे विद्यार्थियों को प्रकृति के बीच समय बिताने, ध्यान-धारणा और नियमित स्वास्थ्य-पर ध्यान देने की प्रेरणा देते हैं।


(g) अनित्यता और अर्पण

जीवन की क्षणभंगुरता को समझकर उन्हें यह जीवन गुरु की राह पर अर्पित कर देना चाहिए—ये उनका प्रमुख संदेश है।


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5. आज के संदर्भ: हाल की घटनाएँ और विचार

प्रतिदिन का पदयात्रा (Padayatra): पहले वे वृन्दावन में रात को असराम से शिरोमणि क्षेत्र तक पदयात्रा करते थे, लेकिन अब स्थानीय निवासियों की शिकायतों की वजह से इसे अस्थायी रूप से रोक दिया गया है।

गणेश प्रतिमा विवाद: महाराष्ट्र के उल्हासनगर में एक गणेश प्रतिमा बनाई गई जो प्रेमानंद जी महाराज की छवि से प्रेरित थी—कुछ लोगों ने इसे श्रद्धालु सम्मान बताया, जबकि अन्य ने इसे परंपरा का अपमान कहा।

गुरुमंत्र विराट-अनुष्का को: उन्होंने मशहूर क्रिकेटर विराट कोहली और अभिनेत्री अनुष्का शर्मा को गुरु मंत्र दिए—ध्यान और साधना से ईश्वर से संबंध बढ़ाने तथा सेवा भाव अपनाने पर ज़ोर देने वाले सुझाव दिए गए थे।

मंत्र साधना विधि: “ॐ कृष्णाय वासुदेवाय…” मंत्र का जाप—ब्रह्म मुहूर्त में 108 माला के साथ—संसारिक बाधाओं को दूर करने में बहुत प्रभावी बताया गया है।

नवजात भविष्य सुरक्षा उपाय: उन्होंने अपचयी या सड़क दुर्घटना जैसी आकस्मिक घटनाओं से बचने के पांच सरल उपाय बताए हैं, जो नकारात्मक ऊर्जा को दूर करते हुए जीवन में सुरक्षा और आंतरिक शांति लाते हैं।

समाज के प्रति दृष्टिकोण: एक महिला जो वर्षो तक संतानहीन रही—उस पर समाज द्वारा ताने आदि—इनसे दूर रहते हुए संयम और श्रद्धा बनाए रखने की सलाह दी गई, जैसे गंगामाता और शांतनु महाराज की कथाओं से प्रेरणा लेकर।



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6. सारांश: एक संक्षिप्त दृष्टिकोण

विषय सारांश

जन्म/परिवार कानपुर, भक्तिमय वातावरण, दादा संन्यासी
अध्यात्मिक आरंभ 13 वर्ष की उम्र में संन्यास, गुरु से दीक्षा
व्यक्तित्व सहज प्रेम, विनम्रता, साधारण जीवन
उपदेश प्रेम, अहंकार त्याग, आंतरिक संतोष, स्वास्थ्य
आज का प्रभाव पदयात्रा, मंत्र साधना, उपाय, प्रतिष्ठा



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निष्कर्ष:
Sant Premanand Ji Maharaj का जीवन हमें प्रेम, समर्पण, और विनम्रता के उस रास्ते पर ले जाता है जो न केवल धार्मिक है, बल्कि व्यावहारिक और मानवतावादी भी है। वे इस बात के प्रतीक हैं कि कैसे साधारण जीवन और सच्चे मन से किए गए छोटे कार्य भी महान परिवर्तन ला सकते हैं—चाहे वह मानसिक शांति हो, आध्यात्मिक उन्नति हो या समाज में सद्भाव बनाना।

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