भाई जी : हनुमान प्रसाद पोदार जी का जीवन और आध्यात्मिक विरासत

 

                 हनुमान प्रसाद पोदार जी महाराज 

1. प्रस्तावना

भारतभूमि संतों, महापुरुषों और समाज सुधारकों की जन्मस्थली रही है। यहाँ हर युग में ऐसे विभूतियों ने जन्म लिया जिन्होंने न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में योगदान दिया, बल्कि समाज को सशक्त, संस्कारित और संगठित भी किया।

इन्हीं महापुरुषों में से एक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोदार जी महाराज, जिन्हें लोग स्नेहपूर्वक भाई जी कहकर संबोधित करते हैं।

भाई जी का जीवन गीता के निष्काम कर्मयोग का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने न तो कभी कीर्ति की चाह रखी और न ही यश का लोभ किया, बल्कि सेवा और धर्मप्रचार को ही अपना ध्येय बनाया। उनका सबसे बड़ा योगदान है – “कल्याण” पत्रिका का संपादन और प्रकाशन, जिसने करोड़ों लोगों के हृदय में भक्ति का दीप जलाया।


2. प्रारंभिक जीवन व पारिवारिक पृष्ठभूमि

जन्म: 17 अप्रैल 1892 को उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले में

पिता: श्री बाबूलाल पोदार – एक धार्मिक और संस्कारी व्यापारी परिवार

माता: गहन धार्मिक प्रवृत्ति की महिला, जिनसे प्रारंभिक संस्कार मिले

परिवार: पोदार समाज में इनका स्थान विशेष था। परिवार समृद्ध था, किंतु भाई जी बचपन से ही भक्ति और आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे।

बाल्यकाल से ही उनका स्वभाव सरल, मृदुभाषी और सेवा भाव से ओतप्रोत था। मित्र उन्हें विद्वान और दयालु मानते थे।



3. शिक्षा और संस्कार

प्रारंभिक शिक्षा झाँसी में हुई।

हिंदी, संस्कृत और अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया।

व्यापारिक परिवार से होने के कारण व्यावसायिक शिक्षा भी मिली, किंतु उनका मन सदैव धार्मिक ग्रंथों और साधु-संतों की संगति में अधिक रमने लगा।

बचपन से ही रामचरितमानस, श्रीमद्भगवद्गीता, भागवत महापुराण जैसे ग्रंथ उनके प्रिय रहे।

उनके संस्कार इतने गहरे थे कि किशोरावस्था में ही उन्होंने संकल्प लिया – “जीवन का उद्देश्य केवल धर्मसेवा और समाज कल्याण होगा।”

4. आध्यात्मिक झुकाव व संतों का सान्निध्य

भाई जी के जीवन में संतों का प्रभाव गहरा था।

वे अकसर संत-महात्माओं की सेवा में जाते।

साधना और नामजप उनका प्रिय अभ्यास बन गया।

उन्होंने स्वयं को “सेवक” मानकर कार्य करना शुरू किया।

बचपन से ही वे संतों को गुरु रूप में मानते और उनके उपदेशों को आत्मसात करते। यह संस्कार ही आगे चलकर उन्हें एक महान धर्मसेवी और साहित्यकार बना गया।

5. साहित्यिक योगदान

5.1 कल्याण पत्रिका की स्थापना

भाई जी के जीवन का सबसे बड़ा अध्याय है “कल्याण” मासिक पत्रिका।

इसकी शुरुआत वर्ष 1926 में गोरखपुर से हुई।

प्रकाशक: गीताप्रेस गोरखपुर

संपादक: भाई जी (श्री हनुमान प्रसाद पोदार)

इस पत्रिका का उद्देश्य था –

भारतीय संस्कृति का प्रचार

धर्म और अध्यात्म की सरल भाषा में व्याख्या

आमजन को रामायण, गीता, भागवत आदि का सुलभ ज्ञान

आज भी कल्याण पत्रिका करोड़ों घरों में पूजनीय स्थान पर रखी जाती है।

5.2 गीता, रामायण और अन्य ग्रंथों का प्रचार

भाई जी ने “गीता प्रेस” के माध्यम से कई धार्मिक ग्रंथों का संपादन व प्रकाशन कराया –

श्रीमद्भगवद्गीता (सुलभ भाषा में)

रामचरितमानस

भागवत महापुराणa

वेद, उपनिषद और स्मृतियाँ

उन्होंने इन ग्रंथों को अलंकारों और कठिन भाषा से मुक्त कर सरल रूप में प्रस्तुत किया।


5.3 धार्मिक साहित्य का प्रसार

उनके द्वारा संपादित धार्मिक साहित्य ने –

घर-घर में भक्ति का वातावरण बनाया।

पाठकों को सत्य, अहिंसा और सेवा का संदेश दिया।

समाज में नैतिकता, सदाचार और संस्कारों की धारा प्रवाहित की।


6. सामाजिक व धार्मिक कार्य

6.1 गौसेवा और धर्म रक्षा

भाई जी को गौसेवा से गहरा लगाव था।

उन्होंने गौशालाओं की स्थापना और संरक्षण किया।

धर्म रक्षा के लिए संघर्ष किया और हिंदू समाज को संगठित किया।


6.2 शिक्षा और स्वास्थ्य

गरीब और निर्धन विद्यार्थियों की सहायता की।

विद्यालयों व धर्मशालाओं का निर्माण कराया।

स्वास्थ्य सेवा में भी सहयोग दिया।


6.3 भारतीय संस्कृति का प्रचार

वे मानते थे कि “संस्कृति ही राष्ट्र की आत्मा है।”

उन्होंने भारतीय संस्कार, व्रत, त्योहार, और परंपराओं को घर-घर पहुँचाया।


7. स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्रभक्ति

भाई जी एक राष्ट्रभक्त थे।

यद्यपि वे सीधे राजनीति में नहीं आए, किंतु उनकी लेखनी ने स्वतंत्रता संग्राम को वैचारिक बल दिया।

वे चाहते थे कि स्वतंत्र भारत धार्मिक, सांस्कृतिक और नैतिक रूप से सुदृढ़ बने।


8. उनके विचार व दर्शन

8.1 धार्मिक दृष्टिकोण

धर्म का मूल उद्देश्य है – सेवा, प्रेम और भक्ति।

भगवान की भक्ति बिना लोकसेवा अधूरी है।


8.2 जीवन-दर्शन

सरल जीवन, उच्च विचार

लोभ, मोह और अहंकार से दूर रहना

निष्काम भाव से कर्म करना


8.3 समाज सुधार की दृष्टि

जाति-पांति से ऊपर उठकर मानव सेवा पर बल

शिक्षा और संस्कारों के महत्व पर ज़ोर

महिलाओं के सम्मान और शिक्षा का समर्थन



9. प्रमुख ग्रंथ और रचनाएँ

भाई जी स्वयं बड़े साहित्यकार थे।

उन्होंने अनेक लेख, निबंध और संपादकीय लिखे।

कल्याण पत्रिका में उनके हजारों लेख आज भी प्रेरणा देते हैं।

धार्मिक विषयों पर उनकी भाषा अत्यंत सरल और हृदयस्पर्शी थी।



10. संतों व महापुरुषों के साथ संबंध

भाई जी का संपर्क अनेक संत-महात्माओं और विद्वानों से रहा।

गोरखनाथ पीठ, अयोध्या, वृंदावन और काशी के संतों के साथ उनकी गहरी आत्मीयता थी।

वे स्वयं को “शिष्य” मानते और संतों से मार्गदर्शन लेते।


11. उत्तरकालीन जीवन

जीवन के अंतिम दिनों तक उन्होंने कल्याण पत्रिका का संपादन किया।

कभी नाम या यश का मोह नहीं किया।

वे कहते – “साहित्य मेरा नहीं, भगवान का है।”

निधन: 22 मार्च 1971 को हुआ।



12. विरासत और आज का प्रभाव

कल्याण पत्रिका आज भी प्रकाशित हो रही है और करोड़ों पाठक इसे श्रद्धा से पढ़ते हैं।

गीता प्रेस गोरखपुर विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक प्रकाशन संस्थान बन चुका है।

भाई जी की छवि आज भी “धर्मसेवी संत” के रूप में अमर है।

उनकी शिक्षाएँ आज भी हर गृहस्थ और साधक के लिए पथप्रदर्शक हैं।

13. निष्कर्ष

हनुमान प्रसाद पोदार जी महाराज (भाई जी) का जीवन भारतीय संस्कृति का एक उज्ज्वल अध्याय है।

उन्होंने साहित्य, समाज और धर्म तीनों क्षेत्रों में अद्वितीय योगदान दिया।

उनका जीवन इस सत्य को

 सिद्ध करता है कि – “सच्ची साधना वही है जो दूसरों के कल्याण के लिए हो।”



आज जब समाज भौतिकवाद और असंस्कारिता की ओर बढ़ रहा है, तब भाई जी की शिक्षाएँ और आदर्श और भी प्रासंगिक हो जाते हैं। उनका नाम सदैव भारतीय संस्कृति, धर्म और भक्ति की धारा में अमर रहेगा।

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