राधावल्लभ सम्प्रदाय का आरंभ
इस सम्प्रदाय की स्थापना हिट हरिवंश महाप्रभु जी (जन्म : संवत् 1530, स्थान – बृज के बड़ गाँव, जिला – मथुरा) ने की थी।
वे स्वयं राधारानी के प्रकट रूप माने जाते हैं और उन्हें "राधावल्लभ जी महाराज" कहा जाता है।
राधावल्लभ लाल जी कौन हैं?
👉 यहाँ भ्रम होता है।
दरअसल –
राधावल्लभ जी कोई मनुष्य नहीं बल्कि श्री राधावल्लभ लाल जी श्रीविग्रह (देव स्वरूप) हैं। यह विग्रह स्वयं प्रकट हुआ स्वरूप है, जिसे आज वृन्दावन के प्रसिद्ध श्री राधावल्लभ मंदिर में विराजमान किया गया है।
श्री राधावल्लभ लाल जी
1. श्री राधावल्लभ लाल जी का स्वरूप श्रीकृष्ण का अत्यंत मनोहर बालस्वरूप है।
2. इस विग्रह के साथ श्रीराधा जी की प्रतिमा नहीं है, बल्कि राधा जी की उपस्थिति एक रजतासन (चाँदी के सिंहासन) द्वारा प्रकट की जाती है।
3. यही इस सम्प्रदाय की अनूठी विशेषता है – यहाँ सेवा केवल श्रीकृष्ण को राधा जी के परम प्रिय स्वरूप में की जाती है।
1. प्रकट होने की कथा
श्री राधावल्लभ जी का स्वरूप वृन्दावन में प्रकट हुआ। कथा के अनुसार, यह विग्रह भक्तों को दैवीय प्रेरणा और अद्भुत चमत्कारों के द्वारा प्राप्त हुआ। इसे श्री हित हरिवंश महाप्रभु जी (16वीं शताब्दी) ने स्थापित किया, जो राधावल्लभ सम्प्रदाय के आचार्य एवं संस्थापक माने जाते हैं।
2. स्वरूप की विशेषता
राधावल्लभ जी की मूर्ति में श्रीकृष्ण का रूप है, लेकिन इसमें राधाजी की अदृश्य उपस्थिति मानी जाती है। भक्त मानते हैं कि यहाँ श्री राधा और श्रीकृष्ण दोनों का अद्वितीय मिलन है। मंदिर में राधारानी की प्रतिमा नहीं है, क्योंकि विश्वास है कि वहाँ स्वयं राधाजी अदृश्य रूप में विराजमान रहती हैं।
3. राधावल्लभ मंदिर, वृन्दावन
राधावल्लभ जी का प्रसिद्ध मंदिर वृन्दावन (उत्तर प्रदेश) में स्थित है। इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ और यह ब्रज के सप्तदेवल (सात प्राचीन मंदिरों) में गिना जाता है।
इस मंदिर की सेवा और पूजा राधावल्लभ सम्प्रदाय के अनुयायी करते हैं।
4. दर्शन और पूजा पद्धति
यहाँ राधा-कृष्ण की लीलाओं को अत्यंत प्रेम और माधुर्य भाव से गाया जाता है। भजन और रसिया यहाँ की विशेषता हैं। दर्शन में शृंगार, भोग, और संध्या आरती का महत्व है।
5. महत्त्व
राधावल्लभ जी केवल एक देवस्वरूप नहीं, बल्कि राधा-भाव और कृष्ण-स्वरूप का अद्वितीय संगम हैं।
यह सम्प्रदाय सिखाता है कि परम भक्ति का मार्ग श्री राधाजी की कृपा और प्रेम से होकर जाता है।
🙏 निष्कर्ष
राधावल्लभ लाल जी कोई साधु, गुरु या मानव नहीं, बल्कि स्वयं श्रीकृष्ण का दिव्य प्रकट स्वरूप (विग्रह) हैं। इनका प्राकट्य वृन्दावन में संवएत् 1585 (1528 ई.) में हुआ। आज भी वृन्दावन के श्री राधावल्लभ मंदिर में विराजमान होकर भक्तों को कृपा प्रदान कर रहे हैं।